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Paddy variety

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 जो कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार दे कर किसानों को कर रही है मालामाल

धान की कई किस्में हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं इनमें से एक किस्म पूसा-1509 है जो किसानों को मालामाल कर रही है। एक एकड़ में ₹75000 तक की लागत देती है जिससे किसान की आर्थिक स्थिति में बहुत अच्छा असर पड़ता है। 

इस किस्म की धान लगाने से मुख्य फायदा यह है कि धान की कटाई होने के बाद हम उस खेत में सब्जियां भी लगा सकते हैं, ऐसे में किसान गेहूं लगाने के पहले सब्जियों से काफी रुपए कमा लेते हैं जिससे उनकी आय बढ़ जाती है। 

यह फसल न केवल कम दिनों में पकती है बल्कि इसकी खेती करने से किसानों को बहुत लाभ मिलता है इसलिए कई लोगों का कहना है कि धान की यह किस्म पूसा-1121 की जगह ले सकती है। 

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ना केवल भारत में सप्लाई होता है बल्कि इसकी मांग विदेशों में भी है। यूरोप में भी इस चावल की सप्लाई काफी मात्रा में होती है। कई एक्सपार्टों का कहना है कि विश्व बाजार में इस चावल के अच्छे दाम मिलेंगे। 

इस किस्म का चावल बहुत सुंदर है। चावल में सुगंध भी अच्छी है। धान की यह किस्म रोपाई के तीन महीने बाद तक पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती करने में पानी और खाद काम मात्रा में लगता है, अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। 

धान के इस किस्म के बीज की मांग बहुत है क्योंकि इससे किसानों को बहुत अच्छी पैदावार प्राप्त हो रही है। तरावडी की अनाज की मंडी बासमती की बड़ी मंडी है। 

और आजकल इस मंडी में पूसा-1509 किस्म की धान भी आना शुरू हो गई है। इस फसल का उत्पादन 20 से 22 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन हो रहा है और इसे बेचने पर 3800 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से रुपए मिलते हैं। मतलब किसानों को इसमें 75000 रुपए प्रति एकड़ तक की पैदावार मिल रही है। 

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पूसा-1509 किस्म का दबदबा क्यों :

धान की पूसा-1509 किस्म के आने के पहले किसान धान की पूसा-1121 नमक किस्म की खेती करते थे। इसकी खेती करने में किसानों को कुछ दिक्कत आती थी। जैसे इस प्रकार की किस्म के पौधों की ऊंचाई अधिक होती थी। 

शुरू से लेकर फसल के तैयार होने में लगभग 5 महीने का वक्त लगता था और अगर कटने पर एक रात खेत में रुक गई तो 15-20% तो खेत में ही झड़ जाती थी। जिसके कारण किसानों का काफी नुकसान हो जाता था। 

लेकिन पूसा-1509 किस्म में ये सब परेशानियां नहीं आतीं। यह किस्म पूसा-1121 का उन्नत रूप है इसलिए इस किस्म की मांग ज्यादा है। इसके अलावा इस किस्म की खेती करने में पानी की कम मात्रा का इस्तेमाल होता है जिससे पानी की बचत होती है। 

इस प्रकार के किस्म की खेती करने से किसान को काफी फायदा मिलता है। जानकारी के मुताबिक इस साल करीब 200 क्विंटल बीज किसानों को दिया गया है जिसकी रोपाई लगभग 50 हजार हेक्टेयर में की गई है। 

और अगले वर्ष इसकी मात्रा बढ़ाई जाएगी जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। आने वाले समय में पानी की और कमी होगी, पानी को बचाना है तो किसानों को इस तरह की किस्मों का चयन जरूर करना होगा।

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बुआई की जानकारी :

इस किस्म की धान की बुआई 17 मई से 21 जून तक कर सकते हैं एवं रोपाई का सही समय जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक है। एक एकड़ धान की रोपाई के लिए 4-5 कि.ग्रा. धान की आवश्यकता होती है। 

पूसा-1509 की कतार से कतार से दूरी 20cm और पौधे से पौधे की दूरी 15cm होनी चाहिए। बुआई के पूर्व बीजों का बीजोपचार कर लेना चाहिए। और उचित उर्वरक का चयन करना चाहिए। 

उर्वरकों का उपयोग मृदा के परीक्षण के हिसाब से करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रिटी लक्नोर + सेफनर का उपयोग बुआई के 3-4 दिन बाद करना चाहिए। इस प्रकार की किस्म में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती इसलिए समय समय पर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। जब दाने परिपक्व हो जाएं तो इसकी कटाई कर लें। 

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धान की यह किस्म किसानों को नुकसान दे सकती है :

धान की इस केस में इतनी खूबियां होने के बावजूद भी कुछ खामियां भी हैं। देश के कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में बासमती जो सबसे पॉपुलर धान की किस्म थी उसमें एक दिक्कत सामने आ गई है। 

अभी तक ठीक काम कर रहे धान की इस किस्म में कुछ खामियों के कारण सरकार द्वारा इसके बीज वापस लिए जा रहे हैं इसलिए जो भी किसान धान कि इस किस्म की फसल करते हैं वह अब सावधान हो जाएं। 

ऐसा ठीक उसी प्रकार हुआ है जिस प्रकार किसी कंपनी की गाड़ी में खराबी आ जाने के कारण वह कंपनी उस गाड़ी को वापस ले लेती है। सरकार द्वारा ऐसा अहम फैसला इसलिए लिया गया है ताकि किसानों को ज्यादा नुकसान का सामना ना करना पड़े। 

अगर आप भी धान की किस्म के बीज वापस करना चाहते हैं तो आप 21 मई के पहले वापस कर सकते हैं। इसके लिए आपको खरीदी की ओरिजिनल रसीद दिखानी पड़ेगी तभी आप इस किस्म के बीजों को वापस कर सकते हैं। बीज वापसी के बदले किसानों को उनका पैसा या फिर नए बीज दिए जाएंगे।

इतने पॉपुलर बीज को क्यों लिया वापस लेने का फैसला :

जानकारी के मुताबिक एक किसान ने इस बीज के लिए शिकायत की थी जिसके कारण पूसा ने इसका टेस्ट किया जिसमें पता चला कि इसकी उपज सिर्फ 40 फ़ीसदी है जो कि 80 से 90 फ़ीसदी होना चाहिए इसीलिए सरकार द्वारा यह बीज वापस लिया जा रहा है। 

खराबी सिर्फ एक लाट में थी, जिसकी वजह से २५ फरवरी से ४ अप्रैल २०२२ तक की अवधी वाले कर्नाल क्षेत्र से बिक्री हुए एक लाट को वापस लिया जा रहा है। उस बिक्री की रसीद दिखा के किसान भाई बदले में नया बीज या पैसे वापस ले सकते हैं। 

किसान भाई क्षेत्रीय केंद्र करनाल, फोनः 018 42267169 पर बात कर सकते हैं। आशा करते हैं की पूसा-1509 की खेती से सम्बंधित जानकारी किसान भाइयों को पसंद आयी हो, इससे सम्बंधित किसी भी प्रकार की जानकारी चाहतें हों या अपने सुझाव देना चाहें तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

आज हम आपको धान की उन दस उन्नत प्रजातियों के विषय में बताने जा रहे हैं। जो कि उत्तर प्रदेश में सामान्यतः उगाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में धान की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। अब हम बात करेंगे इन 10 उन्नत किस्मों में से हर एक की अपनी प्रमुख विशेषताओं और फायदों के बारे में। बतादें, कि धान की इन उन्नत किस्मों को उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा उनकी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध साथ ही उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता की वजह से पसंद किया जाता है। किसी विशेष प्रजाति का चयन किसानों की प्रमुख जरूरतों और प्राथमिकताओं पर आश्रित रहता है। चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन सिंचाई सुविधाओं, उर्वरक उपयोग मृदा के प्रकार, मौसम, कीट प्रबंधन बाकी प्रबंधन कार्य जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर अलग हो सकता है। हालांकि, यहां धान की 10 उन्नत प्रजाति हैं। तो वहीं उनकी अनुमानित प्रति हेक्टेयर उत्पादन, जो समान्तयः उत्तर प्रदेश में बोई जाती हैं।

धान की दो उन्नत प्रजातियां

पंत धान 10: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और संकर किस्म है, जो कि उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु मशहूर है। यह एक लघु समयावधि की फसल भी है, जो कि तकरीबन 115-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

पीबी1: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक ऐसी किस्म है, जिसको उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जाता है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छे प्रतिरोध और उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह अति शीघ्र पकने वाली फसल भी है, जिसे पकने में लगभग 110-115 दिन लगते हैं।

एचयूआर 105: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में काफी मशहूर है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह एक छोटी अवधि की फसल भी है, जो तकरीबन 115-120 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

एनडीआर 97: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो आमतौर पर उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और अनाज की अच्छी गुणवत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह पकने वाली फसल भी है, जिसके पकने में तकरीबन 115-120 दिन लग जाते हैं।

पूसा बासमती 1121: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह बासमती चावल की एक बेहतरीन पैदावार देने वाली किस्म है, जो अपने लंबे एवं पतले दानों, सुखद सुगंध व उत्कृष्ट खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह कीटों एवं रोगों के लिए भी प्रतिरोधी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए अन्य किस्मों की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। इसकी बाजार में काफी मांग है। साथ ही, इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर बिरयानी बनाने के लिए किया जाता है। यह भी पढ़ें: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

पूसा सुगंध 5: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक सुगंधित चावल की किस्म है, जो उत्तर प्रदेश के अंदर व्यापक तौर से उत्पादित की जाती है। यह अपने छोटे और सुगंधित अनाज, उच्च उपज क्षमता के लिए मशहूर है। यह पकाने में भी आसान होती है।

पूसा 44: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बेहद मशहूर है। यह भी एक उच्च उपज वाली किस्म है, जो बहुत सारे कीटों व रोगों के लिए प्रतिरोधी सबित होती है, जो कि इसको कृषकों हेतु एक विश्वसनीय विकल्प बनाती है।

सरजू 52: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और गैर-बासमती किस्म है जो कि सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपने मध्यम आकार के अनाज एवं खाना पकाने की बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। साथ ही, यह कीटों और रोगों के लिए भी प्रतिरोधी है।

महसूरी: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक किस्म है, जो उत्तर प्रदेश समेत भारत के विभिन्न इलाकों में उगाई जाती है। यह अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता, उच्च उपज क्षमता के साथ-साथ अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह शीघ्र पकने वाला भी है एवं यह 120-125 दिनों में कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

पीआर 121: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। यह किस्म की उच्च उत्पादक क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोध क्षमता और उत्तम अनाज की गुणवत्ता हेतु काफी मशहूर मानी जाती है। यह एक छोटी समयावधि की फसल भी है, जो तकरीबन 110-115 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। यह धान की उन्नत किस्मों के कुछ उदाहरण हैं, जो सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उत्पादित की जाती हैं। बहुत सारी बाकी किस्में भी उत्पादित की जाती हैं, जिनमें से हर एक किस्म की अपनी अनोखी खासियत और फायदा है। यह ध्यान रखना काफी अहम है, कि इस लेख में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अनुमानित आंकड़ों पर आधारित है। क्योंकि किसानों द्वारा अपनाई गई खास स्थितियों एवं प्रबंधन प्रथाओं के तहत वास्तविक पैदावार भिन्न हो सकती है।
धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उत्तम किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को हरियाणा, दिल्ली जम्मू- कश्मीर, पंजाब और उत्तर प्रदेश की जलवायु को देखते हुए विकसित किया है। मानसून की दस्तक के साथ ही धान की खेती चालू हो गई है। समस्त राज्यों में किसान भिन्न भिन्न किस्म के धान का उत्पादन कर रहे हैं। कोई मंसूरी धान की खेती कर रहा है, तो कोई अनामिका धान की खेती कर रहा है। परंतु, बासमती की बात ही कुछ ओर है। अगर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा के किसान बासमती की खेती करना चाहते हैं, तो आज हम उनको कुछ ऐसी प्रमुख किस्मों के विषय में जानकारी प्रदान करेंगे, जिससे उनको अच्छी खासी पैदावार अर्जित होगी। विशेष बात यह है, कि इन प्रजातियों को कृषि वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न राज्यों के मौसम को ध्यान में रखते हुए इजात किया है।

पूसा सुगंध- 5:

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उम्दा किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को जम्मू- कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, यूपी और हरियाणा की जलवायु को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है। यदि इन राज्यों के किसान पूसा सुगंध- 5 की खेती करते हैं, तो उनको बेहतरीन उत्पादन मिलेगा। पूसा सुगंध- 5 की रोपाई करने के 125 दिन पश्चात इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। इसकी खेती करने पर एक हेक्टेयर में 60-70 क्विंटल तक पैदावार होगी। ये भी पढ़े: धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

पूसा बासमती- 1121:

पूसा बासमती- 1121 को कृषि वैज्ञानिकों ने सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया है। इसकी फसल 145 दिन के अंतर्गत तैयार हो जाती है। पूसा बासमती- 1121 की उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1121 धान की एक अगेती किस्म है।

पूसा सुगंध- 3:

पूसा सुगंध- 3 को सुगंध और लंबे चावल के दाने के लिए जाना जाता है। यह खाने में बेहद ही स्वादिष्ट लगता है। यदि हरियाणा, पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली के सिंचित क्षेत्रों के किसान इसकी खेती करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 60-65 क्विंटल पैदावार अर्जित कर सकेंगे। इसकी फसल 125 दिन के अंतर्गत पक कर तैयार हो जाती है। ये भी पढ़े: पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन

पूसा बासमती- 6:

पूसा बासमती- 6 की सिंचित इलाकों में रोपाई करने पर अधिक उत्पादन अर्जित होगा। यह एक बौनी प्रजाति का बासमती धान होता है। इसके दाने काफी ज्यादा सुगंधित होते हैं। पूसा बासमती- 6 की उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 55 से 60 क्विंटल होती है।

पूसा बासमती- 1:

पूसा बासमती- 1 धान की एक ऐसी किस्म है, जिसका उत्पादन किसी भी प्रकार के सिंचित क्षेत्रों में किया जा सकता है। इसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा पाई जाती है। इसमें झुलसा रोग की संभावना ना के समान है। विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1 की फसल 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मतलब कि 135 दिन के पश्चात किसान इसकी कटाई कर सकते हैं। यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में पूसा बासमती- 1 की खेती करते हैं, तो लगभग 50-55 क्विटल तक उत्पादन मिल सकता है।